भारतीय समाज और हिंदी उपन्यास
By: पाण्डेय, अरुण कुमार Pandey, Arun Kumar.
Publisher: दिल्ली दिव्यम प्रकाशन 2017Description: xi, 105p.ISBN: 9789382658740.Other title: Bhartiya samaj aur hindi upanyas.Subject(s): indian society -- weaver-india | indian literature -- womens -- indiaDDC classification: 891.43 Summary: भारतीय समाज और सहंिी उपन्यास शीसभक पुस्तक समकालीन सहंिी उपन्यासो के माध्यम से भारतीय समाज का एक व्रतर तचत्र प्रस्तुत करती है । एक तरफ एक पुस्तक १८५७ केबढ़ तनर्मभत आधुतनक भारत के तवकास के तबच मुसलमानो की सामातजक, आर्थभक और शैितणक तस्ततथ का मूल्यांकन करते हुए िेश के भीतर उनकी तस्ततथ का सैद्ांततक तवश्लेषण करती है तो िूसरी तरफ भारत की बहुस्तरीय समस्याओ - भूख , गरीबी, बेरोजगारी, अतशिा, सम्प्रदियकता, लैंतगक भेिभाव और भूमंडलीयकरण के पटरणाम स्वरुप उपजी- दकसान आत्माहत्या जैसी भयावह सचाईयो के कारणों की पड़ताल करती है । दकसानो की आत्महत्याए भारत का एक िुखि सत्य है बतल्क भारतीय समाज के कतथत तवकास का एक प्रश्न तचन्ह है । दकसान आत्महत्या के मूल कारणों का संधान करता आलेख इस पुस्तक को अथभवान और तवश्वनीय बनाता है। साम्प्रिातयकता भारतीय समक की एक तवकि समस्या है । बिले हुए समय में साम्प्रिातयकता के उभार की वजहों और उन पर की जाने वाली राजनीती को भी यह पुस्तक पूरी गंभीरता से उतघाटित करती है । तकतनकी तवकास के युग में बचो को िी जाने वाली प्रारंतभक तशिा में मूल्यबोध और संस्कार जैसे प्रशनो को भी लेखक ने उठाया है । उन्होंने मतहला उपन्यासकारों के लेखन का तववेचन करते हुए मतहला लेखन की तवषयगत तवतवधता और व्यापक सामातजक सरोकारों को तचतनत दकआ है । कहने की अवसक्ता नहीं है । गहन सभ्यता समीिा करती अरु कुमार पांडेय की यह पुस्तक सहंिी आलोचना को समृद् करेगीItem type | Current location | Collection | Call number | Status | Notes | Date due | Barcode |
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Books | NASSDOC Library | हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह | 891.43 PAN-B (Browse shelf) | Available | हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह | 50111 |
भारतीय समाज और सहंिी उपन्यास शीसभक पुस्तक समकालीन सहंिी उपन्यासो के माध्यम से भारतीय समाज का एक व्रतर तचत्र प्रस्तुत करती है । एक तरफ एक पुस्तक १८५७ केबढ़ तनर्मभत आधुतनक भारत के तवकास के तबच मुसलमानो की सामातजक, आर्थभक और शैितणक तस्ततथ का मूल्यांकन करते हुए िेश के भीतर उनकी तस्ततथ का सैद्ांततक तवश्लेषण करती है तो िूसरी तरफ भारत की बहुस्तरीय समस्याओ - भूख , गरीबी, बेरोजगारी, अतशिा, सम्प्रदियकता, लैंतगक भेिभाव और भूमंडलीयकरण के पटरणाम स्वरुप उपजी- दकसान आत्माहत्या जैसी भयावह सचाईयो के कारणों की पड़ताल करती है । दकसानो की आत्महत्याए भारत का एक िुखि सत्य है बतल्क भारतीय समाज के कतथत तवकास का एक प्रश्न तचन्ह है । दकसान आत्महत्या के मूल कारणों का संधान करता आलेख इस पुस्तक को अथभवान और तवश्वनीय बनाता है। साम्प्रिातयकता भारतीय समक की एक तवकि समस्या है । बिले हुए समय में साम्प्रिातयकता के उभार की वजहों और उन पर की जाने वाली राजनीती को भी यह पुस्तक पूरी गंभीरता से उतघाटित करती है । तकतनकी तवकास के युग में बचो को िी जाने वाली प्रारंतभक तशिा में मूल्यबोध और संस्कार जैसे प्रशनो को भी लेखक ने उठाया है । उन्होंने मतहला उपन्यासकारों के लेखन का तववेचन करते हुए मतहला लेखन की तवषयगत तवतवधता और व्यापक सामातजक सरोकारों को तचतनत दकआ है । कहने की अवसक्ता नहीं है । गहन सभ्यता समीिा करती अरु कुमार पांडेय की यह पुस्तक सहंिी आलोचना को समृद् करेगी
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