000 | 04197nam a2200253 4500 | ||
---|---|---|---|
999 |
_c38417 _d38417 |
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020 | _a9788180310647 | ||
041 | _ahin- | ||
082 |
_a934.02 _bPAN-V |
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100 | 1 |
_aपाण्डे, गोविन्द चन्द्र _qPandey, Govind Chandra _eलेखक. _eauthor. |
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245 |
_aवैदिक संस्कृति / _cगोविन्द चन्द्र पाण्डे |
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246 | _aVaidik Sanskriti | ||
260 |
_aप्रयागराज : _bलोकभारती प्रकाशन, _c2019. |
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300 | _a651p. | ||
504 | _aIncludes bibliographical references and index. | ||
520 | _aभारतीय परम्परा में वेद को अनादि अथवा ईश्वरीय माना गया है। इतिहास और संस्कृति के विद्यार्थी के लिए इनमें भारतीय एवं आद्यमानव परम्परा की निधि है। महर्षि यास्क से लेकर सायण तक वेद के पण्डितों ने इनके अनेक अर्थ निकाले हैं, जिसके कारण वेदों की सही व्याख्या कठिन है। आधुनिक युग में वेदों पर जो भी प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखे गये हैं उनमें इतिहास की दृष्टि से व्याख्या भले ही की गयी हो लेकिन आध्यात्मिक और सनातन अर्थ उपेक्षित हैं। पुराने भाषाशास्त्रीय व्याख्या के स्थान पर नयी पुरातात्त्विक खोज के द्वारा वेदों का जो इतिहास पक्ष बदला है उसका मूल्यांकन भी यहाँ किया गया है। इस अन्य में न केवल मैक्समूलर आदि को नयी व्याख्याएँ एवं सायण आदि की यज्ञपरक व्याख्या पर, बल्कि दयानन्द श्रीअरविन्द, मधुसूदन ओझा आदि की संकेतपरक व्याख्या पर भी विचार किया गया है। वैदिक संस्कृति की परिभाषा करनेवाले ऋत-सत्यात्मक सूत्रों की विवेचना एवं किस प्रकार वे भारतीय सभ्यता के इतिहास में प्रकट हुए हैं इस पर भी चिन्तन किया गया है। वैदिक संस्कृति, धर्म, दर्शन और विज्ञान की अधुनातन सामग्री के विश्लेषण में आधुनिक पाश्चात्य एवं पारम्परिक दोनों प्रकार की व्याख्याओं की समन्वित समीक्षा इस पुस्तक में की गयी है। इस प्रकार तत्त्व जिज्ञासा और ऐतिहासिकता के समन्वयन के द्वारा सर्वाङ्गीणता की उपलब्धि का प्रयास इस ग्रन्थ की विचार शैली का मूलमन्त्र और प्रणयन का उद्देश्य है। | ||
546 | _aHindi. | ||
650 | _aभारतीय सभ्यता. | ||
650 | _aवेदों. | ||
650 | _aहिन्दू धर्म. | ||
650 | _aवैदिक दर्शन. | ||
650 | _aवैदिक साहित्य. | ||
650 | _aवैदिक कर्मकांड. | ||
942 |
_2ddc _cBK |