000 | 12948nam a2200169 4500 | ||
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999 |
_c37046 _d37046 |
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082 | _aRK.0317 | ||
100 |
_a कमेडिया,आरती _uShri Atal Bihari Vajpayee Government Arts And Commerce College _vIndore, Madhya Pradesh ; |
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245 |
_aजनजातीय क्षेत्रों में विपणन तंत्र की नवीन उभारती हुई प्रवर्तियो दवारा रूपान्तर : _bमध्य प्रदेश के पश्चिमी जनजाति पेटी का एक अध्ययन / _cडॉ आरती कमेडिया |
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260 |
_aNew Delhi : _bIndian Council of Social Science Research, _c2016 |
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300 | _axii, 317p. | ||
520 | _aविपणन तंत्र एक आर्थिक क्रिया है किन्तु यह अर्थशास्त्र के साथ-साथ समाज, संस्कृति, विज्ञान, तकनीकी एवं राजनीति से भी जुड़ी हुई है। विपणन का संबंध सभी क्षेत्रों से है इसलिए विपणन की प्रक्रिया को समझना आज सभी क्षेत्रों की जरूरत है। आज विपणन सिर्फ गाँवों, करों, नगरों, जिलों: राज्यों या देश तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह किसी देश की सीमा पार कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हो चुके है। वर्तमान में विपणन तंत्र एक वैश्विक प्रणाली है जो विभिन्न देशों के मध्य संचालित होती है। वैश्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण तथा वृहत सूचना प्रणाली ने सम्पूर्ण विश्व को एक वृहत आर्थिक इकाई के रूप में स्थापित कर दिया है ' तथा सभी विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों को सीमा पार के उत्पाद एवं सेवाओं के विपणन हेतु | प्रेरित किया है। विकास की इस दौड़ में अब अविकसित देश भी शामिल होने की राह में है अर्थात् विपणन तंत्र किसी भी क्षेत्र के विकास में अहम भूमिका निभा रहे है। विपणन तंत्र में हो रहे परिवर्तन बड़े-बड़े विपणन केंद्रों के साथ-साथ छोटे-छोटे विपणन केंद्रों में भी परिलक्षित हो रहे है। ग्रामीण एवं जनजातीय क्षेत्र भी इससे अछूते नही हैं क्योंकि वर्ष 2044 की जनगणना के अनुसार देश में कुल 6,40,867 है जहाँ देश की 68.84% जनसंख्या निवास करती है। अतः: अब नगरों के साथ-साथ गाँवों की ओर मुड़ना वर्तमान समय की माँग है क्योंकि विपणन तंत्र के लिए आवश्यक उपभोक्ताओं की अधिकांश संख्या यहीं वेद्यमान है। प्रसिद्ध क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुताबिक पिछले दो वर्षों में उपभोक्ता वस्तुओं की खपत नगरों के मुकाबले ग्रामों में अधिक तेजी से बढ़ी है। वर्ष 2009-40 और 2044- 42 के बीच ग्रामीण या अर्द्धशहरी क्षेत्रों में आवश्यक वस्तुओं के अतिरिक्त अन्य खर्च तकरीबन 3.75 लाख करोड़ रूपये था जबकि नगरीय क्षेत्रों में यह खर्च लगभग 2.99 लाख करोड़ रूपये था। महत्वपूर्ण तथ्य यह हैं कि यह खर्च साबुन, ट्थपेस्ट, तेल, घरेलु सामग्री पर ही ना होकर टेलीविजन और मोबाइल जैसी वस्तुओं पर भी हुआ है। अतः स्पष्ट हैं कि ग्रामीण । क्षेत्रों अब उपभोग एवं वस्तु क्रय के मापदण्ड परिवर्तित हो रहे है। परम्परागतता के स्थान आधुनिकता ने अपने पैर पसारने प्रारम्भ कर दिए है इसीलिए विभिन्न राष्ट्रीय एवं अतराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने उत्पादों का विस्तार करने हेतु इन ग्रामीण एवं जनजातीय क्षेत्रों की और अग्रसर हो रही है। इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में प्रसाधन सामग्री, घरेलु सामग्री के साथ साथ इलेक्ट्रानिक वस्तुओं के निर्माण करने वाली कम्पनियाँ भी शामिल है अर्थात् अब ये छोटे, अविकसित, पिछड़े ग्रामीण एवं जनजातीय क्षेत्र विभिन्न देशी एवं विदेशी कम्पनियों के आरक्षण के केंद्र बन गए है जहाँ विकास की अपार सम्भावनाएँ नीहित है । जनजातीय क्षेत्रों में बाजार की छवि बहुत ही तेजी से परिवर्तित होती जा रही है। में जो बाजार सिर्फ वस्तु विनिमय पर आधारित थे, वर्तमान में कई नवीन क्रियाओं के जनक बन बये है। परम्परागतानुसार जनजातीय क्षेत्र एवं उनके बाजार सिर्फ जीवन जीने या मात्र निर्वाह करने की अर्थव्यवस्था पर आधारित होते थे तथा बचत की संकल्पना, विनियोग, निवेश तथा गुणोत्तर वृद्धि की अवधारणाएँ उनके दर्शन में नहीं होती थी। यद्यपि अब जनजातीय क्षेत्र एकांकी नहीं रह गए है बल्कि वे धीरे-धीरे वैश्विक बाजार के अभिन्न अंग बनते जा रहे है। इस प्रक्रिया ने जनजातीय अर्थव्यवस्था एवं उनकी शैली दोनों में संरचनात्मक परिवर्तन किए है, खासतौर पर युवा पीढ़ी में। प्राचीन समय में बाजार का मुख्य आधार वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित था। जनजातीय क्षेत्रों के बाजार का स्वरूप मुख्य रूप से खाद्यान्न अर्थात् जीवन निर्वाह हेतु आवश्यक खाने-पीने की वस्तुओं व वनोपज से संबंधित रहता था परन्तु आज के जनजातीय ह क्षेत्रों में परिवर्तन स्पष्ट परिलक्षित होता है। आज के जनजातीय एवं ग्रामीण बाजार भी विकासशील अवस्था में है, इसका मुख्य कारण यहीं है कि संचार क्रांति में गत कुछ वर्षो में अचानक वृद्धि होने, खासतौर पर मीड़िया के प्रवेश से बाजार के स्तर में परिवर्तन हुआ है। साथ ही उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण, औद्योगीकरण, नगरीकरण, की नीतियों के कारण बाजार की अवसंरचनात्मक प्रकृति तथा जनजातीय-ग्रामीण व्यक्तियों की जीवन शैली में हो रहे परिवर्तनों की गति को बल मिल रहा है जिससे इन क्षेत्रों ने विकास की राह पकड़ ली है। अत: यह कहना असत्य नहीं होगा कि विपणन तंत्र का भविष्य यहीं ग्रामीण एवं जनजातीय क्षेत्र है जहाँ बदलाव प्रारम्भ हो चुका है, चाहे वह आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक हो या व्यवहारिक। इन क्षेत्रों के उत्थान में जो पूर्व में अड़चने थी, वह धीरे-धीरे कम या समाप्त देती जा रही हैं तथा इनकी प्रगति का कार्य आरम्भ हो चुका है जिसमें विपणन केंद्र एक अहम् भमिका का निर्वाह कर रहे है। विपणन तंत्र की नवीन प्रवृत्तियाँ इन ग्रामीण एवं जनजातीय 3 क्षेत्रों में कई परिवर्तन कर रही है जो इनके आर्थिक एवं सामाजिक विकास में सहायक है। इन नवीन प्रवृत्तियों को अपनाने में कठिनाईयाँ अवश्य हैं किन्तु इन्हें अपनाना एवं समझना असम्भव है नहीं है| अतः प्रस्तुत शोध में विपणन तंत्र की महत्ता को समझते हुए उसके द्वारा हो जनजातीय क्षेत्रों के रूपांतरण का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। विपणन' शब्द मूलतः संस्कृत भाषा के विषण' से बना है जो पुल्लिंग है तथा जिसका अर्थ विक्रय बाजार” अथवा छोटे व्यापार से है । | ||
536 | _aIndian Council of Social Science Research, New Delhi | ||
650 |
_aSocial psychology _vIntergenerational relationships _zMadhya Pradesh |
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650 |
_aMotivation research _vAdvertising--Psychological aspects _zMadhya Pradesh |
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650 |
_aSocial perception _vRepresentations, Social _zMadhya Pradesh |
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942 |
_2ddc _cRP |