सामाजिक परिवर्तन (समाजशास्त्र रीडर v)/ Samajik Parivartan edited by:भार्गव, नरेश वेददान सुधीर अरुण चतुवेर्दीसंजय लोढ़ा नरेश भार्गव; वेददान सुधीर; अरुण चतुवेर्दी; संजय लोढ़ा - जयपुर : रावत प्रकाशन, 2021. - xix, 289p. Include Reference.

व्यक्ति समाज का रचयिता है। व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों से जो संरचना बनी है, वही समाज है। सामाजिक सम्बन्धों के इसी ताने-बाने से व्यक्ति और रचित समाज के बीच सम्बन्धों के स्वरूप स्थापित होते हैं। इसलिए व्यक्तियों के समाज के साथ कई संदर्भ हैं। समाज और व्यक्ति के सम्भावित रिश्ते को जानने की जिज्ञासा भी रहती है। इसी तरह किसी भी समाज में सामाजिक व्यवस्था प्रभावित होती रहती है। कई कारक, मान्यताएँ, परिस्थितियाँ और व्यवहार समाज में विचलन और गतिरोध उत्पन्न करते हैं। जो धीरे-धीरे सामाजिक समस्याओं का रूप ले लेते हैं। इन सामाजिक समस्याओं से मानवीय सामाजिक जीवन प्रभावित होता है और सामाजिक विघटन की भी सम्भावना बनती है। अतः समाज को बनाए रखने और उसे समृद्ध बनाने के लिए गहराई से इन समस्याओं को समझने की आवश्यकता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सामाजिक परिवर्तनों में आंदोलनों की महती भूमिका होती है। आन्दोलन समाजशास्त्र में सामूहिक व्यवहार के प्रतीक हैं। सामूहिक व्यवहार के यों तो कई स्वरूप हैं, पर आन्दोलन एक विशिष्ट प्रकार के व्यवहार का समूह है। समाज को बदलने और न बदलने की आकांक्षाएँ इसके साथ जुड़ी हुई हैं। दोनों ही सूरत जन अथवा वर्गीय आक्रोश को आन्दोलन के रूप में प्रकट करती हैं। सामाजिक आन्दोलन के अपने स्वरूप और प्रभाव हैं। तीन खंड में विभक्त यह संकलन भारतीय सन्दर्भों में इन्हीं सब बातों को रेखांकित करता है, जो विद्यार्थियों और पाठकों की समझ को तार्किकता प्रदान करेंगी।

9788131611784


परिवर्तन, सामाजिक--सामाजिक इतिहास
सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन
संस्कृति प्रसार

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