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व्यवस्था-परिवर्तन

Contributor(s): Bhagat, Arun Kumar.
Publisher: Delhi Mekhla Prakashan 2016Description: xvi, 136p.ISBN: 9789381415849.Other title: Vyavastha Parivartan.Subject(s): Political Science -- Governance System -- IndiaDDC classification: 320.4 Summary: स्वाधीन देश को अपने स्वत्व और आत्मा को पहचान कर अपनी आवश्कताओं को ध्यान में रख अपने स्वभाव के अनुसार व्यवस्था का तनमागण करना चातहये | रचना – तक्रयािन, अनुभव, संशोधन सुधार- पुनरगचना का चक्र मानव तवकास की र्ाथा है | भारत में स्वतंत्रता प्रान्त्रप्त के पश्चात संतवधानपरक व्यवस्था तवकतसत हुई तजसे सहमतत का नेहरू मॉडल कहा र्या | कालक्रमानुसार इन व्यवस्थाओं में िदलाव महत्वपूणग एवं आवश्क है | अपने देश तक चुनावी प्रतक्रया, व्यवस्था, तशक्षा प्रणाली, प्रशासन व्यवस्था, न्याय व्यवस्था मेंराष्ट्रका स्वत्व प्रकट होनेवालेपररवतगन के तलए आकांक्षा अपेतक्षत है| भारत को औपतनवेतशक व्यवस्था एवं तंत्र की मानतसकता से मुि कराना व्यवस्था पररवतगन संिंधी आन्त्रन्दलन का युर्धमग है | व्यवस्था पररवतगन एक सतत प्रतक्रया है तजसकी पररकल्पना सामातजक , आतथगक, शैतक्षक, सांस्कृ ततक, वैचाररक िौन्त्रद्धक क्रांतत, नैततक एवं आध्यान्त्रत्मक क्क्क्रन्त्रन्तयों द्वारा पररकन्त्रल्पत है |तिना व्यन्त्रि तनमागण के समाज और व्यवस्था पररवतगन संभव नहीं है | आलोच्य पुस्तक में व्यवस्था पररवतगन के तवतभन्न आयामों को तवकतसत करनें का प्रयास है
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स्वाधीन देश को अपने स्वत्व और आत्मा को पहचान कर अपनी आवश्कताओं को ध्यान में रख अपने स्वभाव के अनुसार व्यवस्था का तनमागण करना चातहये | रचना – तक्रयािन, अनुभव, संशोधन सुधार- पुनरगचना का चक्र मानव तवकास की र्ाथा है | भारत में स्वतंत्रता प्रान्त्रप्त के पश्चात संतवधानपरक व्यवस्था तवकतसत हुई तजसे सहमतत का नेहरू मॉडल कहा र्या | कालक्रमानुसार इन व्यवस्थाओं में िदलाव महत्वपूणग एवं आवश्क है | अपने देश तक चुनावी प्रतक्रया, व्यवस्था, तशक्षा प्रणाली, प्रशासन व्यवस्था, न्याय व्यवस्था मेंराष्ट्रका स्वत्व प्रकट होनेवालेपररवतगन के तलए आकांक्षा अपेतक्षत है| भारत को औपतनवेतशक व्यवस्था एवं तंत्र की मानतसकता से मुि कराना व्यवस्था पररवतगन संिंधी आन्त्रन्दलन का युर्धमग है | व्यवस्था पररवतगन एक सतत प्रतक्रया है तजसकी पररकल्पना सामातजक , आतथगक, शैतक्षक, सांस्कृ ततक, वैचाररक िौन्त्रद्धक क्रांतत, नैततक एवं आध्यान्त्रत्मक क्क्क्रन्त्रन्तयों द्वारा पररकन्त्रल्पत है |तिना व्यन्त्रि तनमागण के समाज और व्यवस्था पररवतगन संभव नहीं है | आलोच्य पुस्तक में व्यवस्था पररवतगन के तवतभन्न आयामों को तवकतसत करनें का प्रयास है

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