उत्तरआधुनिकतावाद: राजनीति, समाज एवं संस्कृति/ भोला प्रसाद सिंह
By: सिंह, भोला प्रसाद.
Publisher: जयपुर: रावत प्रकाशन, 2016Description: 295p.ISBN: 9788131607565.Other title: Uttar Aadhuniktavad.Subject(s): उत्तरआधुनिकतावाद -- पश्चिमी सामाजीय -- पश्चिमी सामाजीय | वैचारिक परम्परा -- बौद्धिक आन्दोलन -- साहित्य -- समाज दर्शनDDC classification: 320.14997 Summary: आज सम्पूर्ण विश्व में उत्तरआधुनिकतावाद की चर्चा हो रही है। 1990 के दशक के दौरान पश्चिमी सामाजीय c के क्षेत्र में एक सर्वथा नवीन वैचारिक परम्परा की शुरुआत हुई, जिसे उत्तरआधुनिकतावाद कहा जाता है। उत्तरआधुनिकतावाद वह बौद्धिक आन्दोलन है, जिसमें कला, साहित्य, समाज दर्शन, समाज विज्ञान, भाषा, भवन निर्माण इत्यादि शामिल हैं तथा यह उनमें होने वाले मूलभूत परिवर्तन का बोध कराता है। उत्तरआधुनिकतावाद अपनी विशिष्ट मान्यताओं एवं दार्शनिक स्थापनाओं के साथ पश्चिमी चिंतन की सभी मान्यताओं का विकल्प प्रस्तुत कर रहा है। उसने पश्चिमी चिंतन एवं दार्शनिक सिद्धान्तों की सभी आधारभूत मान्यताओं और अवधारणाओं का खंडन कर उनकी जगह अपना विकल्प प्रस्तुत किया है। इसने सम्पूर्ण पश्चिमी चिंतन प्रणाली एवं प्रक्रिया को चुनौती देकर एक वैकल्पिक चिंतन प्रणाली और प्रक्रिया को स्थापित करने की कोशिश की है। उत्तरआधुनिकतावाद ने आधुनिक जीवन दृष्टिकोण एवं उस पर आधारित सभी राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के अलावा उनके औचित्य को स्थापित करने वाली विचारधाराओं को भी चुनौती दी है। प्रस्तुत पुस्तक का बिम्ब सीमित और स्पष्ट है। यह मूलतः सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में उत्तरआधुनिकतावाद के प्रभावों का आकलन करती है। यह पुस्तक इस बात पर भी विचार करती है कि उत्तरआधुनिकतावाद आधुनिक तर्कपूर्ण वैज्ञानिक मान्यताओं पर आधारित वैध ज्ञान, इतिहास की मान्यताओं तथा स्थापित समाजशास्त्रीय एवं राजनीतिक मान्यताओं का खंडन क्यों और किस प्रकार करता है। प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न अध्यायों के अंतर्गत उत्तरआधुनिकतावाद की स्थापना से लेकर उसकी समालोचना की चर्चा की गई है। संभवतः इस विषय-वस्तु पर हिन्दी में यह पहली पुस्तक है। हिन्दी पाठकों के लिए यह एक बोधगम्य तथा उपयोगी पुस्तक सिद्ध होगी, ऐसा विश्वास है।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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Books | NASSDOC Library | 320.14997 SIN-P (Browse shelf) | Available | 54137 |
आज सम्पूर्ण विश्व में उत्तरआधुनिकतावाद की चर्चा हो रही है। 1990 के दशक के दौरान पश्चिमी सामाजीय c के क्षेत्र में एक सर्वथा नवीन वैचारिक परम्परा की शुरुआत हुई, जिसे उत्तरआधुनिकतावाद कहा जाता है। उत्तरआधुनिकतावाद वह बौद्धिक आन्दोलन है, जिसमें कला, साहित्य, समाज दर्शन, समाज विज्ञान, भाषा, भवन निर्माण इत्यादि शामिल हैं तथा यह उनमें होने वाले मूलभूत परिवर्तन का बोध कराता है।
उत्तरआधुनिकतावाद अपनी विशिष्ट मान्यताओं एवं दार्शनिक स्थापनाओं के साथ पश्चिमी चिंतन की सभी मान्यताओं का विकल्प प्रस्तुत कर रहा है। उसने पश्चिमी चिंतन एवं दार्शनिक सिद्धान्तों की सभी आधारभूत मान्यताओं और अवधारणाओं का खंडन कर उनकी जगह अपना विकल्प प्रस्तुत किया है। इसने सम्पूर्ण पश्चिमी चिंतन प्रणाली एवं प्रक्रिया को चुनौती देकर एक वैकल्पिक चिंतन प्रणाली और प्रक्रिया को स्थापित करने की कोशिश की है। उत्तरआधुनिकतावाद ने आधुनिक जीवन दृष्टिकोण एवं उस पर आधारित सभी राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के अलावा उनके औचित्य को स्थापित करने वाली विचारधाराओं को भी चुनौती दी है।
प्रस्तुत पुस्तक का बिम्ब सीमित और स्पष्ट है। यह मूलतः सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में उत्तरआधुनिकतावाद के प्रभावों का आकलन करती है। यह पुस्तक इस बात पर भी विचार करती है कि उत्तरआधुनिकतावाद आधुनिक तर्कपूर्ण वैज्ञानिक मान्यताओं पर आधारित वैध ज्ञान, इतिहास की मान्यताओं तथा स्थापित समाजशास्त्रीय एवं राजनीतिक मान्यताओं का खंडन क्यों और किस प्रकार करता है। प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न अध्यायों के अंतर्गत उत्तरआधुनिकतावाद की स्थापना से लेकर उसकी समालोचना की चर्चा की गई है। संभवतः इस विषय-वस्तु पर हिन्दी में यह पहली पुस्तक है। हिन्दी पाठकों के लिए यह एक बोधगम्य तथा उपयोगी पुस्तक सिद्ध होगी, ऐसा विश्वास है।
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