भारत के संकटग्रस्त वन्य प्राणी / गुणाकर मुले
By: मुले, गुणाकर Mule, Gunaakar [लेखक., author.].
Publisher: दिल्ली : राजकमल प्रकाशन, 2014Description: 247p.ISBN: 9788126725755 .Other title: Bharat ke Sankatagrast Vanya Praanee.Subject(s): वन्यजीव संरक्षण | भारत | लुप्तप्राय प्रजातियां | जंगल के जानवरDDC classification: 591.73 Summary: हम इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते कि किसी दिन इस धरती पर केवल मानव जाति का अस्तित्व होगा। पशु-पक्षियों व अन्य जीवधारियों की असंख्य प्रजातियों और वनस्पतियों की अगणित किस्मों के अभाव में क्या इस सृष्टि में जीवन को बचाए रखना संभव होगा। सच्चाई तो यह है कि सृष्टि एक अखंड इकाई है। चराचर की पारस्परिक निर्भरता ही जीवन का मूल मंत्र है। यदि किसी कारण से जीवन-चक्र खंडित होता है तो इसके भीषण परिणाम हो सकते हैं। 'भारत के संकटग्रस्त वन्य प्राणी' में प्रसिद्ध लेखक गुणाकर मुळे ने ऐसे प्राणियों की चर्चा की है जो विलुप्त होने की कगार पर हैं। उन्होंने अनेक ऐसे प्राणियों का जिक्र किया है जिन्हें अब इस धरती पर कभी नहीं देखा जा सकता। विगत दशकों में 36 प्रजातियों के स्तनपायी प्राणी और 94 नस्लों के पक्षी प्रकृति के अंधाधुंध शोषण के कारण नष्ट हो चुके हैं। लेखक की चिंता यह है कि यदि इसी प्रकार हिंसा, लालच और अतिक्रमण का दौर चलता रहा तो इस खूबसूरत दुनिया का क्या होगा! यह असंतुलन विनाशकारी होगा। लेखक के अनुसार, 'हमारे देश में प्राचीन काल से वन्य प्राणियों के संरक्षण की भावना रही है। हमारी सभ्यता और संस्कृति में वन्य प्राणियों के प्रति प्रेम भाव रहा है। इसलिए हमारे समाज में वन्य जीवों को पूज्य माना जाता है। वन्य जीवों तथा पक्षियों को मुद्राओं और भवनों पर भी चित्रित किया जाता रहा है।' हमें आज इस भाव को नए संदर्भों में विकसित करना होगा। वन्य प्राणी संरक्षण के लिए बनाए गए अधिनियमों से अधिक आवश्यकता व्यापक नागरिक चेतना की है गुणाकर मुळे सहज सरल भाषा में इस आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। अनेक चित्रों से सुसज्जित यह पुस्तक पर्यावरण के प्रति जागरूकता निर्माण में बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। हर आयु के पाठकों के लिए पठनीय पुस्तक।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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Books | NASSDOC Library | 591.73 MUL-B (Browse shelf) | Available | 53397 |
Includes bibliographical references and index.
हम इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते कि किसी दिन इस धरती पर केवल मानव जाति का अस्तित्व होगा। पशु-पक्षियों व अन्य जीवधारियों की असंख्य प्रजातियों और वनस्पतियों की अगणित किस्मों के अभाव में क्या इस सृष्टि में जीवन को बचाए रखना संभव होगा। सच्चाई तो यह है कि सृष्टि एक अखंड इकाई है। चराचर की पारस्परिक निर्भरता ही जीवन का मूल मंत्र है। यदि किसी कारण से जीवन-चक्र खंडित होता है तो इसके भीषण परिणाम हो सकते हैं। 'भारत के संकटग्रस्त वन्य प्राणी' में प्रसिद्ध लेखक गुणाकर मुळे ने ऐसे प्राणियों की चर्चा की है जो विलुप्त होने की कगार पर हैं। उन्होंने अनेक ऐसे प्राणियों का जिक्र किया है जिन्हें अब इस धरती पर कभी नहीं देखा जा सकता। विगत दशकों में 36 प्रजातियों के स्तनपायी प्राणी और 94 नस्लों के पक्षी प्रकृति के अंधाधुंध शोषण के कारण नष्ट हो चुके हैं। लेखक की चिंता यह है कि यदि इसी प्रकार हिंसा, लालच और अतिक्रमण का दौर चलता रहा तो इस खूबसूरत दुनिया का क्या होगा! यह असंतुलन विनाशकारी होगा। लेखक के अनुसार, 'हमारे देश में प्राचीन काल से वन्य प्राणियों के संरक्षण की भावना रही है। हमारी सभ्यता और संस्कृति में वन्य प्राणियों के प्रति प्रेम भाव रहा है। इसलिए हमारे समाज में वन्य जीवों को पूज्य माना जाता है। वन्य जीवों तथा पक्षियों को मुद्राओं और भवनों पर भी चित्रित किया जाता रहा है।' हमें आज इस भाव को नए संदर्भों में विकसित करना होगा। वन्य प्राणी संरक्षण के लिए बनाए गए अधिनियमों से अधिक आवश्यकता व्यापक नागरिक चेतना की है गुणाकर मुळे सहज सरल भाषा में इस आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। अनेक चित्रों से सुसज्जित यह पुस्तक पर्यावरण के प्रति जागरूकता निर्माण में बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। हर आयु के पाठकों के लिए पठनीय पुस्तक।
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