पितृसत्ता के नए रूप : स्त्री और भूमंडलीकरण / सम्पादक राजेन्द्र यादव, प्रभा खेतान और अभयकुमार दुबे
Contributor(s): यादव, राजेन्द्र [Yadav, Rajendra] [सम्पादक [editor]] | खेतान, प्रभा [Khetan, Prabha] [सम्पादक [editor]] | दुबे, अभयकुमार [Dubey, Abhaykumar] [सम्पादक [editor]].
Publisher: दिल्ली : राजकमल प्रकाशन, 2019Description: 227p.ISBN: 9788126707676.Other title: Pitrusatta ke Naye Roop: Stri aur Bhoomandalikaran.Subject(s): महिलाओं के अधिकार -- भारत | महिला -- भारत -- सामाजिक परिस्थितियाँDDC classification: 305.42 Summary: भूमंडलीकरण कहता है कि उसके तहत हुआ बाजारों का एकीकरण लैंगिक रूप से तटस्थ है अर्थात् वह मर्दवादी नहीं है। यह एक ऐसा दावा है जो कभी पुनर्जागरण के मनीषियों ने भी नहीं किया था। भूमंडलीकरण इससे भी एक क़दम आगे जाकर कहता है कि नारीवाद के किसी पक्ष से कोई ताल्लुक़ न रखते हुए भी उसने स्त्री के सशक्तीकरण के क्षेत्र में अन्यतम उपलब्धियाँ हासिल की हैं। सवाल यह है कि परिवार, विवाह की संस्था, धर्म और परम्परा को कोई क्षति पहुँचाने का कार्यक्रम अपनाए बिना यह चमत्कार कैसे हुआ? स्त्री को प्रजनन करने या न करने का अधिकार नहीं मिला, न ही उसके प्रति लैंगिक पूर्वाग्रहों का शमन हुआ, न ही उसे इतरलिंगी सहवास की अनिवार्यताओं से मुक्ति मिली और न ही उसकी देह का शोषण ख़त्म हुआ फिर बाज़ार ने यह सबलीकरण कैसे कर दिखाया ? ख़ास बात यह है कि भूमंडलीकरण ख़ुद को लोकतंत्र का पैरोकार बताता है और बाज़ार की चौधराहट का कट्टर समर्थक होते हुए भी एक सीमा तक राज्य के हस्तक्षेप के लिए गुंजाइश छोड़ता है; लेकिन आधुनिकतावाद के गर्भ से निकली अधिकतर संस्थाओं और विचारों को पुष्ट करनेवाला यह भूमंडलीकरण नारीवाद की उपेक्षा करता है। दरअसल इसका सूत्रीकरण अस्सी और नब्बे के उन दशकों में हुआ जिनमें नारीवाद अपने ही गतिरोधों से जूझ रहा था। इसी ज़माने में भूमंडलीकरण ने आधुनिक विचारधाराओं में सिर्फ़ नारीवाद को ही असफल घोषित किया और इस तरह पूँजीवादी आधुनिकता ने पहली बार पितृसत्ता के ख़िलाफ़ संघर्ष का दायित्व पूरी तरह त्याग दिया। मार्च, 2001 में प्रकाशित 'हंस' के 'स्त्री-भूमंडलीकरण : पितृसत्ता के नए रूप' विशेषांक में यह शिनाख्त करने की कोशिश की गई थी कि श्रमिकों की एक विशाल फ़ौज के रूप में स्त्री को आत्मसात् करनेवाले भूमंडलीकरण में नर-नारी सम्बन्धों के विभिन्न समीकरण क्या हैं और उसके तत्त्वावधान में स्त्री कितने प्रतिशत व्यक्ति बनी है और कितने प्रतिशत वस्तु। 'पितृसत्ता के नए रूप : स्त्री और भूमंडलीकरण' कुछ रचनाओं को छोड़कर उसी अंक का पुस्तक रूप है।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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Books | NASSDOC Library | 305.42 PIT- (Browse shelf) | Available | 53426 |
Includes bibliographical references and index.
भूमंडलीकरण कहता है कि उसके तहत हुआ बाजारों का एकीकरण लैंगिक रूप से तटस्थ है अर्थात् वह मर्दवादी नहीं है। यह एक ऐसा दावा है जो कभी पुनर्जागरण के मनीषियों ने भी नहीं किया था। भूमंडलीकरण इससे भी एक क़दम आगे जाकर कहता है कि नारीवाद के किसी पक्ष से कोई ताल्लुक़ न रखते हुए भी उसने स्त्री के सशक्तीकरण के क्षेत्र में अन्यतम उपलब्धियाँ हासिल की हैं। सवाल यह है कि परिवार, विवाह की संस्था, धर्म और परम्परा को कोई क्षति पहुँचाने का कार्यक्रम अपनाए बिना यह चमत्कार कैसे हुआ? स्त्री को प्रजनन करने या न करने का अधिकार नहीं मिला, न ही उसके प्रति लैंगिक पूर्वाग्रहों का शमन हुआ, न ही उसे इतरलिंगी सहवास की अनिवार्यताओं से मुक्ति मिली और न ही उसकी देह का शोषण ख़त्म हुआ फिर बाज़ार ने यह सबलीकरण कैसे कर दिखाया ? ख़ास बात यह है कि भूमंडलीकरण ख़ुद को लोकतंत्र का पैरोकार बताता है और बाज़ार की चौधराहट का कट्टर समर्थक होते हुए भी एक सीमा तक राज्य के हस्तक्षेप के लिए गुंजाइश छोड़ता है; लेकिन आधुनिकतावाद के गर्भ से निकली अधिकतर संस्थाओं और विचारों को पुष्ट करनेवाला यह भूमंडलीकरण नारीवाद की उपेक्षा करता है। दरअसल इसका सूत्रीकरण अस्सी और नब्बे के उन दशकों में हुआ जिनमें नारीवाद अपने ही गतिरोधों से जूझ रहा था। इसी ज़माने में भूमंडलीकरण ने आधुनिक विचारधाराओं में सिर्फ़ नारीवाद को ही असफल घोषित किया और इस तरह पूँजीवादी आधुनिकता ने पहली बार पितृसत्ता के ख़िलाफ़ संघर्ष का दायित्व पूरी तरह त्याग दिया। मार्च, 2001 में प्रकाशित 'हंस' के 'स्त्री-भूमंडलीकरण : पितृसत्ता के नए रूप' विशेषांक में यह शिनाख्त करने की कोशिश की गई थी कि श्रमिकों की एक विशाल फ़ौज के रूप में स्त्री को आत्मसात् करनेवाले भूमंडलीकरण में नर-नारी सम्बन्धों के विभिन्न समीकरण क्या हैं और उसके तत्त्वावधान में स्त्री कितने प्रतिशत व्यक्ति बनी है और कितने प्रतिशत वस्तु। 'पितृसत्ता के नए रूप : स्त्री और भूमंडलीकरण' कुछ रचनाओं को छोड़कर उसी अंक का पुस्तक रूप है।
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