लोक संस्कृति और इतिहास / बद्री नारायण.
By: नारायण, बद्री Narayan, Badri [लेखक., author.].
Publisher: प्रयागराज : लोकभारती प्रकाशन, 2022Description: 126p.ISBN: 9788180315749 .Other title: Lok Sanskriti aur Itihas.Subject(s): लोक संस्कृति | इतिहास और संस्कृति | बौद्धिक ज्ञान | लोकप्रिय चेतना | राष्ट्रवादDDC classification: 390 Summary: प्रस्तुत पुस्तक 'लोक-संस्कृति और इतिहास' के प्रथम लेख में इतिहासकारों का लोक-संस्कृति से कटाव, बौद्धिक ज्ञान और जन- ज्ञान के बीच निरन्तर चौड़ी और गहरी होती खाई की समस्या पर विचार व्यक्त किए गए हैं। दूसरे लेख में पूर्वी लोक- चेतना में राष्ट्रवाद के प्रतिदर्श का अध्ययन और अखिल भारतीय राष्ट्रवाद से इसके सम्बन्धों के स्वरूप एवं द्वन्द्व को भी समझने का प्रयास किया गया है। तीसरे लेख में दन्तकथाओं को इतिहास की संघटनाओं से जोड़कर देखने का प्रयत्न किया गया है। बाद के अन्य लेख लोक- कवित्तों, मुहावरों, गीतों, लोकायनों तथा लोक-संस्कृति के विविध रूपों के माध्यम से लोक-चेतना में प्रवेश करने का प्रयास हैं। यह पुस्तक इतिहास, सामाजिक विज्ञान, लोक- संस्कृति के अध्येताओं के छात्रों के लिए उपयोगी तो है ही, साथ ही साथ आम पाठकों के लिए भी बेहद महत्त्वपूर्ण है ।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
---|---|---|---|---|---|
Books | NASSDOC Library | 390 NAR-L (Browse shelf) | Available | 53404 |
Browsing NASSDOC Library Shelves Close shelf browser
388.4 SMA-E Economics of urban transportation | 388.55 DIE-G The global game of oil pipelines / | 389.6091724 VER-; Standardization: a new discipline | 390 NAR-L लोक संस्कृति और इतिहास / | 390 TR; Tradition, modernization and globalization: a commemorative volume | 390 UPA-L लोक संस्कृति की रूपरेखा / | 390.0954162 BAR-S Society, economy, religion and festivals of Tiwas in Assam |
Includes bibliographical references and index.
प्रस्तुत पुस्तक 'लोक-संस्कृति और इतिहास' के प्रथम लेख में इतिहासकारों का लोक-संस्कृति से कटाव, बौद्धिक ज्ञान और जन- ज्ञान के बीच निरन्तर चौड़ी और गहरी होती खाई की समस्या पर विचार व्यक्त किए गए हैं। दूसरे लेख में पूर्वी लोक- चेतना में राष्ट्रवाद के प्रतिदर्श का अध्ययन और अखिल भारतीय राष्ट्रवाद से इसके सम्बन्धों के स्वरूप एवं द्वन्द्व को भी समझने का प्रयास किया गया है। तीसरे लेख में दन्तकथाओं को इतिहास की संघटनाओं से जोड़कर देखने का प्रयत्न किया गया है। बाद के अन्य लेख लोक- कवित्तों, मुहावरों, गीतों, लोकायनों तथा लोक-संस्कृति के विविध रूपों के माध्यम से लोक-चेतना में प्रवेश करने का प्रयास हैं। यह पुस्तक इतिहास, सामाजिक विज्ञान, लोक- संस्कृति के अध्येताओं के छात्रों के लिए उपयोगी तो है ही, साथ ही साथ आम पाठकों के लिए भी बेहद महत्त्वपूर्ण है ।
Hindi.
There are no comments for this item.