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शह और मात : सुजाता की डायरी / राजेन्द्र यादव

By: यादव, राजेन्द्र Yadav, Rajendra [लेखक., author.].
Publisher: दिल्ली : राधाकृष्ण प्रकाशन, 2018Description: 191p.ISBN: 9788171199730 .Other title: Shah aur Maat: Sujata ki Diary.Subject(s): प्रेम कहानियां | मनोवैज्ञानिक कथा | Self-exploration | एकाधिक व्यक्तित्व | धोखा और हेराफेरीDDC classification: 891.43 Summary: 'शह और मात' दूसरे प्यार की जटिल और कटु कहानी है, जहाँ अपराध - भावना से पीड़ित प्रत्येक पात्र अपना पुनरान्वेषण करता है और अन्त में अपने को एक यंत्रणादायक भ्रान्ति और छलना से घिरा पाता है। उपन्यास की भाषा अपनी ताज़गी, अभिव्यंजना और शक्ति के लिए बार-बार प्रशंसित हुई है। इस उपन्यास को पढ़ना एक अद्भुत - लेकिन बेहद आत्मीय-अनुभव से गुज़रना है, जो अपने को देखने की नई दृष्टि देता है। 'शह और मात',...एक शुद्ध मनोवैज्ञानिक उपन्यास है, इसमें दो व्यक्तियों के प्रति तीसरे व्यक्तित्व (यानी सुजाता) की प्रतिक्रियाओं का वर्णन है। अचरज की बात यह है कि देशकाल की स्थितियों से प्रायः कोई मदद न लेते हुए भी लेखक इस उपन्यास को इतना नाटकीय और सजीव बना देता है! सुजाता की उदय से सम्बद्ध दिलचस्पी क्रमशः अधिक तीखी और गहरी होती जाती है। यह दिलचस्पी बहुत कुछ बौद्धिक क़िस्म की है, उपन्यास की नाटकीयता भी एक ख़ास तरह का बौद्धिक मनोवैज्ञानिक विनोद करती है। उपन्यास की नाटकीयता और रोचकता का एकमात्र रहस्य उसकी मनोवैज्ञानिक सूक्ष्मता एवं यथार्थ अनुकारिता है। उपन्यास का प्रत्येक पन्ना रोचक है।
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Includes bibliographical references and index.

'शह और मात' दूसरे प्यार की जटिल और कटु कहानी है, जहाँ अपराध - भावना से पीड़ित प्रत्येक पात्र अपना पुनरान्वेषण करता है और अन्त में अपने को एक यंत्रणादायक भ्रान्ति और छलना से घिरा पाता है। उपन्यास की भाषा अपनी ताज़गी, अभिव्यंजना और शक्ति के लिए बार-बार प्रशंसित हुई है। इस उपन्यास को पढ़ना एक अद्भुत - लेकिन बेहद आत्मीय-अनुभव से गुज़रना है, जो अपने को देखने की नई दृष्टि देता है। 'शह और मात',...एक शुद्ध मनोवैज्ञानिक उपन्यास है, इसमें दो व्यक्तियों के प्रति तीसरे व्यक्तित्व (यानी सुजाता) की प्रतिक्रियाओं का वर्णन है। अचरज की बात यह है कि देशकाल की स्थितियों से प्रायः कोई मदद न लेते हुए भी लेखक इस उपन्यास को इतना नाटकीय और सजीव बना देता है! सुजाता की उदय से सम्बद्ध दिलचस्पी क्रमशः अधिक तीखी और गहरी होती जाती है। यह दिलचस्पी बहुत कुछ बौद्धिक क़िस्म की है, उपन्यास की नाटकीयता भी एक ख़ास तरह का बौद्धिक मनोवैज्ञानिक विनोद करती है। उपन्यास की नाटकीयता और रोचकता का एकमात्र रहस्य उसकी मनोवैज्ञानिक सूक्ष्मता एवं यथार्थ अनुकारिता है। उपन्यास का प्रत्येक पन्ना रोचक है।

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