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हमारे और अंधेरे के बीच : चार पोलिश कवि / अनुवादक अशोक वाजपेयी, रेनाता चेकाल्स्का

Contributor(s): वाजपेयी, अशोक [अनुवादक ] | चेकाल्स्का, रेनाता [अनुवादक ].
Publisher: नई दिल्ली : वाणी प्रकाशन, 2011Description: 320p.ISBN: 9789350007020.Other title: Hamare aur Andhere ke Beech.Subject(s): पोलिश कविता | पोलिश कविता का हिंदी में अनुवादDDC classification: 891.851 Summary: इससे कौन इनकार कर सकता है कि मनुष्य हर समय अँधेरे और उजाले के बीच अपनी जगह की तलाश में भटकता रहता है। बीसवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध दूसरे महायुद्ध के भीषण नरसंहार के बाद भी बहुत सारी तानाशाहियों और अत्याचारों की गिरफ्त में रहा । संसार भर की कविता ने युद्ध के बाद की राहत के ठण्डे उजाले में बढ़ते हुए अँधेरे को पहचानने की कोशिश की। इस कोशिश में आधुनिक पोलिश कविता ने दो तानाशाहियों और मनुष्य द्वारा मनुष्य पर की जा रही क्रूरताओं और मानवीय अपमान और विडम्बना और इतिहास के विद्रूपों का प्रतिरोध करने और उनके लिए मार्मिक रूपक गढ़ने का दुस्साहस किया। उसकी अजेय कल्पनाशीलता, अदम्य जिजीविषा और भाषा को सर्वथा अप्रत्याशित इलाक़ों में ले जाने की रचनात्मक क्षमता ने जो कविता रची वह विलक्षण, अप्रतिम और अत्यन्त मार्मिक है। उसमें संवेदना की गहराई और वैचारिक सघनता के बीच कोई फाँक नहीं है। पोलिश विदुषी रेनाता चेकाल्स्का के साथ मिलकर ऐसे चार महाकवियों के हिन्दी अनुवाद अब एकत्र प्रस्तुत करते हुए प्रसन्नता है। संयोगवश 2011 चेस्लाव मीलोष की जन्मशती का वर्ष भी है।
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Books Books NASSDOC Library
891.851 HAM- (Browse shelf) Available 54683
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891.851 HAM- (Browse shelf) Available 53459

Includes bibliographical references and index.

इससे कौन इनकार कर सकता है कि मनुष्य हर समय अँधेरे और उजाले के बीच अपनी जगह की तलाश में भटकता रहता है। बीसवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध दूसरे महायुद्ध के भीषण नरसंहार के बाद भी बहुत सारी तानाशाहियों और अत्याचारों की गिरफ्त में रहा । संसार भर की कविता ने युद्ध के बाद की राहत के ठण्डे उजाले में बढ़ते हुए अँधेरे को पहचानने की कोशिश की। इस कोशिश में आधुनिक पोलिश कविता ने दो तानाशाहियों और मनुष्य द्वारा मनुष्य पर की जा रही क्रूरताओं और मानवीय अपमान और विडम्बना और इतिहास के विद्रूपों का प्रतिरोध करने और उनके लिए मार्मिक रूपक गढ़ने का दुस्साहस किया। उसकी अजेय कल्पनाशीलता, अदम्य जिजीविषा और भाषा को सर्वथा अप्रत्याशित इलाक़ों में ले जाने की रचनात्मक क्षमता ने जो कविता रची वह विलक्षण, अप्रतिम और अत्यन्त मार्मिक है। उसमें संवेदना की गहराई और वैचारिक सघनता के बीच कोई फाँक नहीं है। पोलिश विदुषी रेनाता चेकाल्स्का के साथ मिलकर ऐसे चार महाकवियों के हिन्दी अनुवाद अब एकत्र प्रस्तुत करते हुए प्रसन्नता है। संयोगवश 2011 चेस्लाव मीलोष की जन्मशती का वर्ष भी है।

Hindi.

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