ग्रामीण दलित महिलाओं में सामाजिक जागरूकता एवं राजनैतिक चेतना : बिहार के औरंगाबाद जिले के ग्राम पंचायत पर आधारित समाजशास्त्रीय अध्यन्न / डॉ. विकास कुमार
By: कुमार, विकास.
Publisher: New Delhi : Indian Council of Social Science Research, 2013Description: xv, 274p.Subject(s): Dalits -- India | Social desirability -- India | Caste-based discrimination -- IndiaDDC classification: RK.0315 Summary: ग्रामीण दलित महिलाओ में सामाजिक जागरूकता एवं राजनैतिक चेतना के फलस्वरूप से उभरते प्रारूप का आंकलन एवं सर्वेक्षण जिन अनुभवात्मक तथ्यों के आधार पर किया गया हे, उससे परिलिक्षित होता हे की विभिन्न ग्राम पंचायतो में दलित वर्ग के महिलाओ में विंगेट एक दसक के अंतर्गत आर्थिक आत्मनिर्भरता के प्रतिमुखता, सामाजिक रूप से स्वावलम्ब के प्रति जागरूकता, स्वस्थ्य चेतना और भविष्य में परिवार की उत्कर्ष और विकास न को लेकर विशेष उन्मुखता जागृत हुई है। दिशा में समय- समय पर केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा प्रक्षेपित विभिन्न परियोजनाओं खासकर दलित संवर्ग के संदर्भ में महिलाओं के आर्थिक तथा शैक्षणिक विकाज ञ जुडे विविध कार्यकर्मो में इनकी जागरूकता बढ़ी है। इस दिशा में इलेक्ट्रानिक मीडिया(जैसे टेलिविजन, इण्टरनेट), प्रिंट मीडिया से सूचना प्रसारण आदि ने उनमे राजनीतिक सहभागिता, सक्रियता चेतना को बढ़ावा दिया है शिक्षा के प्रति और बच्चों के उचित शिक्षण के प्रति इनमें विशेष सक्रियता बढ़ी है। बिहार के औरंगाबाद जिला के प्रविध ग्राम पंचायतों में दलित महिलाओं की उन्मुखता तथा कर्तव्यों प्रति प्रायः सचेष्ट हुई है और उनकी दिशा उन्मुखता, सम्पन्न जातियों की महिलाओं के नक्शे कदम पर बढ़ी है। ग्रामीण विकास की योजनाओं से जुड़े कार्यों में इनकी सचेष्ट दखलंदाजी अपने संवर्ग के लाभान्चत के प्रति बढ़ी चाहे वह मनरेगा का कार्यक्रम हो, आगनबाड़ी कार्यक्रम आदि में इनकी तत्परता बढ़ी है। पंचायतों में प्राधिकारी सदस्यता से लेकर तहसिल और ब्लॉक स्तर पर इनकी सक्रिय भूमिका सामने आयी हे प्रचार का कुछ इस प्रकार प्रभाव पड़ा है कि ब्लॉक, तहसिल और जिला मुख्यालयों पर बजाय बिजौलियों के माध्यम से अपने हितों और आर्थिक लाभों को प्राप्त करने के स्वयं ही ये उपस्थित होने लगी है। जो ग्राम पंचायत शहरी क्षेत्रों या नगरीय क्षेत्रों के निकटस्थ है, वहाँ स्वयं ही इनका एक बहुत बड़ा वर्ग उद्यम व्यवसाय और अर्थोपार्जन के कार्यों मे पुरूषों के साथ संलिप्त होने लगी हे, वर्ष 2000 के बाद जो अभिनव परिवर्तन टेलिविजन, टेक्नोलॉजी, संचार माध्यम आदि के द्वारा बढ़ा है, उससे इनमें आत्मविश्वास और स्वावलंबन की वृद्धि हुई है। इसे संचार क्रांति का परिणाम ही कहेंगे। अंधविश्वासों की जकड़ से ऊपर उठकर इनमें ताकिक दृष्टि और शक्ति का समावेश होता दिखाई दे रहा है, अपने अधिकारों की कठौती इन्हें अब बर्दास्त नहीं इसके समाधान के लिए अब दलित महिलाएं थाना, जिला, मुख्यालय और पंचायतों में सामूहिक रूप से प्रदर्शन करने लगी है निष्कर्ष के मुख्य बिन्दुओं को निम्नांकित रूप से रेखांकित किया जा सकता - 73वें संविधान संशोधन के पश्चात् पारम्परिक शक्ति संरचना में एक परिमार्जन देखने को मिलता है, ग्राम पंचायतों के चुनाव के दौरान उच्च जातियों में अर्न्तजातीय संघर्ष देखने को मिला है। इसका मुख्य कारण यह है कि सत्ता के उपभोग की इच्छा उच्च जाति के अधिकांशत इच्छा उच्च जाति के लोग करना चाहते हे, इस प्रक्रिया के दौरान विभिन्न उच्च वर्गों में कई प्रकार की गुटबंदी पायी जाती है। जिसके परिणामस्वरूप उच्च वर्ग तथा उच्च वर्ग के बीच ही अन्तःजातीय संघर्ष देखने को मिलता है। -अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षो के आधार पर यह देखा गया है कि आज दलित महिलाएं शोषण, अत्याचार कई तरह की घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं। सुझाव दलित महिला उत्तरदाताओं द्वारा ग्रामीण नेत्रतत्व को और प्रभावशाली बनाने हेतु पुरुषवादी मानसिकता के अंतर्गत बदलाव की मांग की हे।Item type | Current location | Collection | Call number | Status | Date due | Barcode |
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Research Reports | NASSDOC Library | Post Doctoral Research Fellowship Reports | RK.0315 (Browse shelf) | Not For Loan | 52297 |
ग्रामीण दलित महिलाओ में सामाजिक जागरूकता एवं राजनैतिक चेतना के फलस्वरूप से उभरते प्रारूप का आंकलन एवं सर्वेक्षण जिन अनुभवात्मक तथ्यों के आधार पर किया गया हे, उससे परिलिक्षित होता हे की विभिन्न ग्राम पंचायतो में दलित वर्ग के महिलाओ में विंगेट एक दसक के अंतर्गत आर्थिक आत्मनिर्भरता के प्रतिमुखता, सामाजिक रूप से स्वावलम्ब के प्रति जागरूकता, स्वस्थ्य चेतना और भविष्य में परिवार की उत्कर्ष और विकास न को लेकर विशेष उन्मुखता जागृत हुई है। दिशा में समय- समय पर केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा प्रक्षेपित विभिन्न परियोजनाओं खासकर दलित संवर्ग के संदर्भ में महिलाओं के आर्थिक तथा शैक्षणिक विकाज ञ जुडे विविध कार्यकर्मो में इनकी जागरूकता बढ़ी है। इस दिशा में इलेक्ट्रानिक मीडिया(जैसे टेलिविजन, इण्टरनेट), प्रिंट मीडिया से सूचना प्रसारण आदि ने उनमे राजनीतिक सहभागिता, सक्रियता चेतना को बढ़ावा दिया है शिक्षा के प्रति और बच्चों के उचित शिक्षण के प्रति इनमें विशेष सक्रियता बढ़ी है। बिहार के औरंगाबाद जिला के प्रविध ग्राम पंचायतों में दलित महिलाओं की उन्मुखता तथा कर्तव्यों प्रति प्रायः सचेष्ट हुई है और उनकी दिशा उन्मुखता, सम्पन्न जातियों की महिलाओं के नक्शे कदम पर बढ़ी है। ग्रामीण विकास की योजनाओं से जुड़े कार्यों में इनकी सचेष्ट दखलंदाजी अपने संवर्ग के लाभान्चत के प्रति बढ़ी चाहे वह मनरेगा का कार्यक्रम हो, आगनबाड़ी कार्यक्रम आदि में इनकी तत्परता बढ़ी है। पंचायतों में प्राधिकारी सदस्यता से लेकर तहसिल और ब्लॉक स्तर पर इनकी सक्रिय भूमिका सामने आयी हे
प्रचार का कुछ इस प्रकार प्रभाव पड़ा है कि ब्लॉक, तहसिल और जिला मुख्यालयों पर बजाय बिजौलियों के माध्यम से अपने हितों और आर्थिक लाभों को प्राप्त करने के स्वयं ही ये उपस्थित होने लगी है। जो ग्राम पंचायत शहरी क्षेत्रों या नगरीय क्षेत्रों के निकटस्थ है, वहाँ स्वयं ही इनका एक बहुत बड़ा वर्ग उद्यम व्यवसाय और अर्थोपार्जन के कार्यों मे पुरूषों के साथ संलिप्त होने लगी हे, वर्ष 2000 के बाद जो अभिनव परिवर्तन टेलिविजन, टेक्नोलॉजी, संचार माध्यम आदि के द्वारा बढ़ा है, उससे इनमें आत्मविश्वास और स्वावलंबन की वृद्धि हुई है। इसे संचार क्रांति का परिणाम ही कहेंगे।
अंधविश्वासों की जकड़ से ऊपर उठकर इनमें ताकिक दृष्टि और शक्ति का समावेश होता दिखाई दे रहा है, अपने अधिकारों की कठौती इन्हें अब बर्दास्त नहीं इसके समाधान के लिए अब दलित महिलाएं थाना, जिला, मुख्यालय और पंचायतों में सामूहिक रूप से प्रदर्शन करने लगी है
निष्कर्ष के मुख्य बिन्दुओं को निम्नांकित रूप से रेखांकित किया जा सकता
- 73वें संविधान संशोधन के पश्चात् पारम्परिक शक्ति संरचना में एक परिमार्जन देखने को मिलता है, ग्राम पंचायतों के चुनाव के दौरान उच्च जातियों में अर्न्तजातीय संघर्ष देखने को मिला है। इसका मुख्य कारण यह है कि सत्ता के उपभोग की इच्छा उच्च जाति के अधिकांशत इच्छा उच्च जाति के लोग करना चाहते हे, इस प्रक्रिया के दौरान विभिन्न उच्च वर्गों में कई प्रकार की गुटबंदी पायी जाती है। जिसके परिणामस्वरूप उच्च वर्ग तथा उच्च वर्ग के बीच ही अन्तःजातीय संघर्ष देखने को मिलता है।
-अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षो के आधार पर यह देखा गया है कि आज दलित
महिलाएं शोषण, अत्याचार कई तरह की घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं।
सुझाव
दलित महिला उत्तरदाताओं द्वारा ग्रामीण नेत्रतत्व को और प्रभावशाली बनाने हेतु पुरुषवादी मानसिकता के अंतर्गत बदलाव की मांग की हे।
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