चरण सिंह और कांग्रेस राजनीति : एक भारतीय राजनीतिक जीवन, 1937 से 1961 तक
By: ब्रास, पॉल आर. Brass, Paul R.
Series: प्रथम खंड उत्तर भारत की राजनीति: 1937 से 1987 ; द्वितीय खंड उत्तर भारत की राजनीति:1937 से 1987. Publisher: नई दिल्ली सेज भाषा 2018Description: xxiv, 560p.ISBN: 9789351508960.Other title: Charan singh aur congress rajniti: ek bhartiya rajnitik jeevan,1937 se 1961. and 1957 se 1967.Subject(s): Politics and government -- Charan Singh (1902-1987) -- India | Economic Policy -- Indian National Congress -- Lok Dal (India) -- Prime Ministers -- IndiaDDC classification: 954.052092 Summary: इस किताब में एक ऐसे सिद्धांतवादी और स्वाभिमानी व्यक्ति के शुरुआती जीवन का उल्लेख है जो एक समर्पित राष्ट्रवादी था। जिसने देश के लिए देश के नेताओं द्वारा चुने गए मार्ग और इसके अधिकांश पेशेवर राजनेताओं की निंदा की, जबकि अपने देश से प्यार भी किया। वह साधारण पृष्ठभूमि वाला और ग्रामीण क्षेत्र से था। लेकिन वह कोई गांव का गंवार नहीं था बल्कि अपने दम पर सफलता की सीढ़ी चढ़ने वाला बेहद बुद्धिमान श़ख्स था। एक मझोले जाट परिवार से ताल्लुक रखने वाले इस व्यक्ति ने उत्तरी भारत की पिछड़ी जातियों, जिनके हितों को उसने हमेशा बढ़ावा दिया और जिनकी उन्नति में उसने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, का एक नया सामाजिक आंदोलन खड़ा किया और उसकी पैरवी की। चरण सिंह के व्यक्तिगत संग्रह (राजनीतिक फाइलों का) के साथ ही राजनेताओं, प्रसिद्ध श़ख्सियतों और स्थानीय लोगों के विस्तृत साक्षात्कारों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने के बाद यह किताब अस्तित्व में आई है। इस किताब में उस कालक्रम के मुख्य मुद्दों और घटनाओं, जिसमें देश में हिंदू-मुस्लिम संबंधों, तेज गति से औद्योगीकरण के नेहरूवादी उद्देश्य और कृषि को प्राथमिकता देने के पक्षधरों की आकांक्षाओं के बीच संघर्ष, क़ानून व्यवस्था से जुड़े मुद्दे, राजनीति में भ्रष्टाचार और अपराध की वृद्धि, आधुनिक होते समाज में जाति व हैसियत का स्थान और उस जमाने के व्यापक गुटीय राजनीतिक लक्षणों का विवरण है।Summary: यह खंड चरण सिंह के कांग्रेस के प्रति बढ़ते असंतोष के बारे में बताता है, जो नेहरू और उनकी बेटी की उनके प्रति विरोध और उत्तर प्रदेश (यूपी) में कांग्रेस का प्रमुख पार्टी के स्थान से पतन की वजह से बढ़ता गया और परिणामस्वरूप उन्होंने दल बदला और आखिरकार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक नई राजनीतिक पार्टी बनाई। इससे पहले के खंड की ही तरह, यह पुस्तक भी मुख्य रूप से चरण सिंह के राजनीतिक करियर के दौरान लेखक के उनसे अपने व्यक्तिगत संबंधों, बड़ी संख्या में चरण सिंह की राननीतिक फाइलों तक पहुँच और पिछले 50 वर्षों में राजनेताओं, अन्य सार्वजनिक शख्सियतों, किसानों और अन्य लोगों के साथ लेखक के निजी साक्षात्कारों पर आधारित है। यह सुचेता कृपालानी के मुख्य मंत्री कार्यकाल का लेखा-जोखा भी प्रदान करती है जो गुटबाजी के संघर्ष के कारण राजनीतिक दृष्टि से एक बाहरी व्यक्ति होते हुए भी सत्ता में आई। साथ ही उत्तर प्रदेश में क्षेत्रवाद की पृष्ठभूमि की भी यह पुस्तक पड़ताल करती है और उत्तर भारत के राज्यों के पुनर्गठन के मुद्दे पर चरण सिंह की उस भूमिका पर भी प्रकाश डालती है, जिसके बारे में अब तक कम ही जानकारी उपलब्ध थी। यह पुस्तक ‘उत्तर भारत की राजनीति: 1937 से 1987 तक’ पर कई खंडों में लिखी गई श्रृंखला का द्वितीय खंड है।Item type | Current location | Collection | Call number | Vol info | Status | Notes | Date due | Barcode |
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Books | NASSDOC Library | हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह | 954.052092 BRA-C; Vol-1 (Browse shelf) | VOL.1 | Available | हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह | 50158 | |
Books | NASSDOC Library | हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह | 954.052092 BRA-C; Vol-2 (Browse shelf) | VOL.2 | Available | हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह | 50159 |
प्रथम खंड चरण सिंह और कांग्रेस राजनीति एक भारतीय राजनीतिक जीवन 1937 से 1961 तक
द्वितीय खंड चरण सिंह और कांग्रेस राजनीति एक भारतीय राजनीतिक जीवन, 1957 से 1967 तक
included bibliography
इस किताब में एक ऐसे सिद्धांतवादी और स्वाभिमानी व्यक्ति के शुरुआती जीवन का उल्लेख है जो एक समर्पित राष्ट्रवादी था। जिसने देश के लिए देश के नेताओं द्वारा चुने गए मार्ग और इसके अधिकांश पेशेवर राजनेताओं की निंदा की, जबकि अपने देश से प्यार भी किया। वह साधारण पृष्ठभूमि वाला और ग्रामीण क्षेत्र से था। लेकिन वह कोई गांव का गंवार नहीं था बल्कि अपने दम पर सफलता की सीढ़ी चढ़ने वाला बेहद बुद्धिमान श़ख्स था। एक मझोले जाट परिवार से ताल्लुक रखने वाले इस व्यक्ति ने उत्तरी भारत की पिछड़ी जातियों, जिनके हितों को उसने हमेशा बढ़ावा दिया और जिनकी उन्नति में उसने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, का एक नया सामाजिक आंदोलन खड़ा किया और उसकी पैरवी की। चरण सिंह के व्यक्तिगत संग्रह (राजनीतिक फाइलों का) के साथ ही राजनेताओं, प्रसिद्ध श़ख्सियतों और स्थानीय लोगों के विस्तृत साक्षात्कारों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने के बाद यह किताब अस्तित्व में आई है। इस किताब में उस कालक्रम के मुख्य मुद्दों और घटनाओं, जिसमें देश में हिंदू-मुस्लिम संबंधों, तेज गति से औद्योगीकरण के नेहरूवादी उद्देश्य और कृषि को प्राथमिकता देने के पक्षधरों की आकांक्षाओं के बीच संघर्ष, क़ानून व्यवस्था से जुड़े मुद्दे, राजनीति में भ्रष्टाचार और अपराध की वृद्धि, आधुनिक होते समाज में जाति व हैसियत का स्थान और उस जमाने के व्यापक गुटीय राजनीतिक लक्षणों का विवरण है।
यह खंड चरण सिंह के कांग्रेस के प्रति बढ़ते असंतोष के बारे में बताता है, जो नेहरू और उनकी बेटी की उनके प्रति विरोध और उत्तर प्रदेश (यूपी) में कांग्रेस का प्रमुख पार्टी के स्थान से पतन की वजह से बढ़ता गया और परिणामस्वरूप उन्होंने दल बदला और आखिरकार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक नई राजनीतिक पार्टी बनाई।
इससे पहले के खंड की ही तरह, यह पुस्तक भी मुख्य रूप से चरण सिंह के राजनीतिक करियर के दौरान लेखक के उनसे अपने व्यक्तिगत संबंधों, बड़ी संख्या में चरण सिंह की राननीतिक फाइलों तक पहुँच और पिछले 50 वर्षों में राजनेताओं, अन्य सार्वजनिक शख्सियतों, किसानों और अन्य लोगों के साथ लेखक के निजी साक्षात्कारों पर आधारित है। यह सुचेता कृपालानी के मुख्य मंत्री कार्यकाल का लेखा-जोखा भी प्रदान करती है जो गुटबाजी के संघर्ष के कारण राजनीतिक दृष्टि से एक बाहरी व्यक्ति होते हुए भी सत्ता में आई। साथ ही उत्तर प्रदेश में क्षेत्रवाद की पृष्ठभूमि की भी यह पुस्तक पड़ताल करती है और उत्तर भारत के राज्यों के पुनर्गठन के मुद्दे पर चरण सिंह की उस भूमिका पर भी प्रकाश डालती है, जिसके बारे में अब तक कम ही जानकारी उपलब्ध थी।
यह पुस्तक ‘उत्तर भारत की राजनीति: 1937 से 1987 तक’ पर कई खंडों में लिखी गई श्रृंखला का द्वितीय खंड है।
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