विकास का समाजशास्त्र / (Record no. 37630)
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000 -LEADER | |
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fixed length control field | 05158nam a22002417a 4500 |
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
ISBN | 8188714747 |
041 ## - LANGUAGE CODE | |
Language code of text/sound track or separate title | hin- |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | 301.2 |
Item number | DUB-V |
100 ## - MAIN ENTRY--AUTHOR NAME | |
Personal name | दुबे, श्यामाचरण |
Fuller form of name | Dubey, Shyamacharan |
Relator term | लेखक. |
-- | author. |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | विकास का समाजशास्त्र / |
Statement of responsibility, etc | श्यामाचरण दुबे |
246 ## - VARYING FORM OF TITLE | |
Title proper/short title | Vikas ka Samajshastra |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT) | |
Place of publication | दिल्ली : |
Name of publisher | लिटिल बुक्स, |
Year of publication | 2012. |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Number of Pages | 183p. |
504 ## - BIBLIOGRAPHY, ETC. NOTE | |
Bibliography, etc | संदर्भ |
520 ## - SUMMARY, ETC. | |
Summary, etc | पिछले कुछ वर्षों से विकास और आधुनिकीकरण की हवा दुनिया भर में अंधड़ का रूप धारण किए हुए है। उससे उड़ते हुई गर्दी-गुवार आज आँखों तक ही नहीं, दिलो-दिमाग तक भी जा पहुँची है। ऐसे में जो मनुष्योचित और समाज के हित में है, उसे देखने, महसूसने और उस पर सोचने का जैसे अवसर ही नहीं है। मनुष्य के इतिहास में यह एक नया संकट है, जिसे अपनी मूल्यहंता विकास प्रक्रिया के फेर में उसी ने पैदा किया है। यह स्थिति अशुभ है और इसे बदला जाना चाहिए। लेकिन वर्तमान में इस बदलाव को कैसे सम्भव किया जा सकता है या उसके कौन-से आधारभूत मूल्य हो सकते हैं, यह सवाल भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना कि बदलाव। कहना न होगा कि सुप्रतिष्ठित समाजशास्त्री डॉ. श्यामाचरण दुबे की यह कृति इस सवाल पर विभिन्न पहलुओं से विचार करती है। डॉ. दुबे के अनुसार विकास का सवाल महज़ अर्थशास्त्रीय नहीं है, इसलिए 'सकल राष्ट्रीय उत्पाद और राष्ट्रीय आय की वृद्धि को विकास मान लेना भ्रामक है।' उनके लिए ‘रोजगार विहीन विकास' का यूरोपीय ढाँचा आश्चर्य और चिन्ता का विषय है। पूँजीवादी अर्थ-व्यवस्था में उदारीकरण और भूमंडलीकरण के दुष्परिणाम कई विकासशील देशों में सामने आ चुके हैं और भारत में उसके संकेत मिल रहे हैं। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि आर्थिक विकास को सही मायने में सामाजिक विकास से जोड़ा जाय। साथ ही मनुष्य के सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक और नैतिक आयामों को भी सामने रखा जाना आवश्यक है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो आधुनिक विकास को एक मानवीय आधार दिया जाना आवश्यक है, क्योंकि 'गरीबी और उससे जुड़ी समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील हुए बिना न तो जनतंत्र का कोई मतलब है, न ही विकास का। संक्षेप में, प्रो. दुबे की यह पुस्तक संसार के विभिन्न समाजशास्त्रियों के अध्ययन-निष्कर्षो का विश्लेषण करते हुए सामाजिक विकास के प्रायः सभी पहलुओं पर गहराई से विचार करती है, ताकि उसे मनुष्यता के पक्ष में अधिकाधिक संतुलित बनाया जा सके। |
546 ## - LANGUAGE NOTE | |
Language note | Hindi. |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical Term | सामाजिक विकास. |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical Term | आर्थिक विकास. |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical Term | आधुनिकीकरण. |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical Term | भूमंडलीकरण. |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical Term | रोजगार एवं विकास. |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Source of classification or shelving scheme | |
Koha item type | Books |
Withdrawn status | Lost status | Damaged status | Not for loan | Permanent Location | Current Location | Date acquired | Source of acquisition | Cost, normal purchase price | Full call number | Accession Number | Cost, replacement price | Price effective from | Koha item type |
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NASSDOC Library | NASSDOC Library | 2023-03-18 | Overseas | 0.00 | 301.2 DUB-V | 53453 | 0.00 | 2023-06-12 | Books |